लेखनी प्रतियोगिता -25-Nov-2022
पर्यावरण संरक्षण
सांसें थम तोड़ रही है
जन्म से ही मौत सर पर
मंडरा रही है बिन पिए कोई
नशा अब बनें है नशें की
सज़ा के पात्र, क्यू सताए हैं
देखो ये जहां, अभी ना समझे
हम फिर कब समझेंगे मौसम है
धूएं का गुलाम, गुम है बारिश की
गिरती बूंदें खोए है हम ने झरते
आंखों से खुशी के मोती कैसे
सताए हैं ये मौसम का समां।
Punam verma
26-Nov-2022 08:41 AM
Nice
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Abhinav ji
26-Nov-2022 07:45 AM
Nice 👍👍
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Gunjan Kamal
25-Nov-2022 11:33 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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